यस्य जीवन्ति धर्मेण पुत्रा मित्राणि बान्धवाः॥
सफलं जीवितं तस्य नात्मार्थे को हि जीवति॥
जिसके सद्कर्म से पुत्र, मित्र और बंधु जीते हैं।
उसका जीवन सफल है अन्यथा अपने लिये कौन नहीं जीता।
संस्कारों से परिपूर्ण श्री नरेश जी श्राफ अपने पिताजी के गुणों के यतार्थ वाहक है। अपनी दानशीलता से सनातन धर्म सभा के लोकोपकारक कार्यों में उन्होने श्रेष्ठ योगदान दिया है जैसे मेधावी छात्रों को छात्रव्रत्ती देने हेतु अमरनाथ श्राफ चैरिटेबल फाऊंडेशन, अमरनाथ श्राफ सभागार श्री सनातन धर्म धर्मार्थ चिकित्सालय इत्यादि। नरेश जी श्राफ के माध्यम से 'बाबूजी' हमारे बीच आज भी जीवित हैं।