मन्दिर श्री सर्वेश्वर भगवान

मन्दिर श्री सर्वेश्वर भगवान

श्री सनातन धर्म सभा का गठन आज से लगभग 72 वर्ष पूर्व सन 1950 में महाशय श्री चुन्नीलाल जी तथा श्री रतन चन्द जी ग्रोवर के नेतृत्व में धर्म प्रचार, धर्म प्रसार एवं सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों तथा परम्पराओं को जीवित रखने तथा मानव मात्र की सेवा कार्य को प्रारम्भ करने के लिए एक ऐसी पृष्ठभूमि में हुआ, जब धर्म के आधार पर भारत के विभाजन की विभीषिका को झेलते हुए अपने धर्म की रक्षा के लिए लाखों की संख्या में सनातनी हिन्दू अपना घर-बार, जमीन जायदाद एवं व्यापार को छोड़कर पूर्वी पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) से विस्थापित होकर शरणार्थियों के रूप में देश के विभिन्न भागों में आकर अपना आश्रय तलाश रहे थे।

उन्ही विस्थापितों तथा स्थानीय धर्मपरायण समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने धार्मिक गतिविधियां संचालित करने का बीड़ा उठाया। स्थानीय धर्मप्रेमी श्री गोपीनाथ जी खण्डेलवाल के सहयोग एवं सहभागिता से स्थानीय हनुमान पार्क में टीन एवं टट्टर लगा कर उसमें धार्मिक कार्यक्रमों को प्रारम्भ करने हेतु अस्थायी व्यवस्था की गई। ईश्वर के विभिन्न स्वरूपों के चित्रों को लगाकर नित्यप्रति संकीर्तन, प्रवचन तथा पूजा-पाठ प्रारम्भ किया गया जिसमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोग भाग लेने लगे। इससे उत्साहित होकर धर्मप्रेमी श्री गोपीनाथ जी खण्डेलवाल तथा दानवीर श्री लक्ष्मी नारायण जी गौड़, जो नित्यप्रति के धार्मिक आयोजनों में भाग भी लेते थे, ने सन 1949 में श्री चुन्नीलाल जी तथा श्री रतन चन्द जी ग्रोवर के नेतृत्व में एक औपचारिक धार्मिक संगठन के गठन का विचार किया जिसकी परिणिति सन 1950 में श्री सनातन धर्म सभा, कौशलपुरी के विधिवत गठन में हुई और उसका विधिसम्मत पंजीकरण भी कराया।

त्याग एवं परमार्थ की सजीव मूर्ति आदरणीय श्री लक्ष्मी नारायण जी गौड़ ने धर्मप्रेमी एवं समाजसेवी श्री गोपीनाथ जी खण्डेलवाल जी की प्रेरणा से उत्साहित होकर अपना 600 वर्ग गज का 118/195, कौशलपुरी, कानपुर स्थिति भूखंड श्री सनातन धर्म सभा को समर्पित करने का अविस्मरणीय संकल्प लिया। दिनांक 21.03.1950 को मंदिर-भवन के निर्माण का भव्य शिलान्यास किया गया। मंदिर की नींव में लाखों की संख्या में प्रभु श्रीराम नाम के हस्तलिखित पत्रक रखे गए। मंदिर के निर्माण का पुनीत कार्य तीव्र गति से प्रारंभ हुआ जिसको सम्पूर्णता प्रदान करने हेतु सैंकड़ों नर-नारियों ने अपना अदभुत सहयोग दिया, जिसके समकक्ष कोई भी उदाहरण सामान्यतः नही मिल पाता है।

भगवान जी की प्रारभिंक मूर्तियों को दिल्ली से लाया गया और उनकी विधिवत प्रतिष्ठा की गयी। मंदिर का आधारभूत निर्माण होने के बाद से नित्यप्रति धर्मसम्मत पूजा-पाठ एवं प्रातःकालीन प्रवचन का कार्यक्रम मंदिर के भवन में प्रारम्भ हो गया जो निर्बाध रूप से (अतिविशिष्ट परिस्थितियों जैसे कोरोना महामारी का काल, आदि को छोड़कर) वर्तमान समय तक चल रहा है।

सनातन धर्म एवं समाज की सेवा की भावना के अनुरूप ही दिनांक 12-12-1953 को श्रद्धेय श्री सांवरमल जी भाटिया (भाटिया सेफ वर्क्स) ने प्रभु की प्रेरणा से 'सनातन धर्म वाचनालय' की स्थापना में अपना अमूल्य सहयोग प्रदान किया। दिनांक 23.10.55 को सभा द्वारा 'श्री सनातन धर्म धर्मार्थ होम्यो औषद्यालय' श्री सनातन धर्म सभा के द्वारा उक्त धर्मार्थ होम्यो चिकित्सालय निर्बाध रूप से समर्पित एवं योग्य चिकित्सक के नेतृत्व में चलाया जा रहा है, जिससे आज भी बड़ी संख्या में स्थानीय लोग लाभान्वित हो रहे हैं।

आनंदकंद योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जी के जन्मोत्सव श्रीकृष्ण जनाष्टमी के पावन अवसर पर श्री भगवान के जीवन के विभिन्न आयामों को दर्शाती मन को मोहित कर देने वाली आकर्षक झांकियाँ सन 1962 से सजानी प्रारम्भ की गई जिसमे स्थानीय श्री गंगा राम जी अग्रवाल के सम्पूर्ण परिवार का विशिष्ट योगदान रहा। तब से झाकियों को अनवरत रूप से हर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के सुअवसर पर वृहद स्वरूप में सजाया रहा है जिसके दर्शन लाभ हेतु दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं।

प्रसिद्ध ओंकारेश्वर के समीप स्थित घावरी कुण्ड से भूतभावन श्री भगवान शंकर जी का विग्रह लाकर 09.06.1968 को मंदिर-भवन में प्राण प्रतिष्ठा की गई जिसके प्रमुख यजमान आदरणीय श्री ठाकुरदास जी अजमानी रहे। कलश की स्थापना के यजमान श्री नंदलाल जी मलिक थे और मुख्यद्वार के कलश की स्थापना श्री साईं दास जी मेहता के द्वारा कराई गई।

श्री महादेव भगवान के शिवालय को वर्ष 1998 के सितम्बर माह में विस्तार प्रदान करते हुए सभी 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों के स्वरूप के साथ माँ गंगा, माँ अन्नपूर्णा, माँ शीतला एवं माँ यमुना जी के सुंदर स्वरूपों की स्थापना की गई। मंदिर भवन में स्थापित उक्त शिवालय वर्तमान में श्रद्धालु शिवभक्तों के लिए विशेष आकर्षण एवं श्रद्धा का केंद्र है।

परम आदरणीय सर्वश्री डॉ. विष्णु कान्त जी श्रीधर, इंद्रनाथ जी सर्राफ, वीरेंद्र जी मित्तल तथा गोपाल कृष्ण जी पाण्डेय के अथक प्रयासों से वर्ष 1970 में सभा के द्वारा शिक्षा के पुनीत क्षेत्र में पदार्पण करते हुए सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की गई, जिसमें उच्चकोटि के अक्षर ज्ञान के साथ ही भारतीय संस्कृति, संस्कारों एवं परम्पराओं की शिक्षा दी जाती है।

सभा की प्रगतिशील धार्मिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों की इसी निरंतरता के प्रकाश में वर्ष 1972 में मंदिर-भवन में पूज्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री गंगेश्वरानंद जी के द्वारा 'श्री वेद-भगवान' जी की प्रतिष्ठा की गई, जिसके मुख्य यजमान प्रसिद्ध उद्योगपति समूह जे. के. ग्रुप के प्रमुख सर श्री पदमपत जी सिंहानिया थे।

भगवान श्रीकृष्ण का चांदी का सिंहासन एवं दरबार श्री साईं दास जी मेहता की पूज्य माता जी श्रीमती मेहर कौर मेहता द्वारा तथा भगवान श्रीराम जी का दरबार उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुदर्शन रानी मेहता द्वारा अर्पित किया गया। भगवान श्रीराम जी का सिंहासन सभी स्थानीय भक्तगणों के सहयोग से तथा भगवान श्री विष्णु जी का सिंहासन एवं दरबार स्त्री-समाज द्वारा समर्पित किया गया।

शिक्षा के क्षेत्र में असीम संभावनाओं के दृष्टिगत वर्ष 1979 में मंदिर भवन के ठीक पीछे वाला भूखंड संख्या 118/267 को क्रय किया गया, जिसका उद्देश्य बालिकाओं की शिक्षा एवं विकास हेतु एक उच्चस्तरीय विद्यालय की स्थापना करना था। इसी सदुद्देश्य की पूर्ति हेतु दिनांक 26.03.1980 को महामहिम राज्यपाल श्री चन्द्रेश्वर प्रसाद नारायण सिंह जी की उपस्थिति में पूज्य महामंडलेश्वर श्री मुनि हरमिलापी जी महाराज के कर कमलों द्वारा इस भूखंड पर बालिका विद्यालय हेतु भवन के निर्माण की आधारशिला रक्खी गयी एवं महामहिम राज्यपाल द्वारा शुभ शिलान्यास हुआ। स्थानीय समाजसेवियों के सहयोग से, जिसमें प्रमुख रूप से परम आदरणीय श्री अमरनाथ जी सर्राफ के परिवार का अभूतपूर्व सहयोग एवं नेतृत्व रहा, भवन निर्माण त्वरित गति से होने लगा। शीघ्र ही भवन निर्माण सम्पूर्ण होने पर तत्कालीन उत्तर प्रदेश के सम्मानीय मुख्यमंत्री श्री श्रीपति मिश्र के द्वारा बालिका विद्यालय का उदघाट्न हुआ। आदरणीय श्री अमरनाथ जी सर्राफ के परिवार द्वारा इस विद्यालय भवन में एक विशाल वाचनालय की स्थापना भी की गई।

सरस्वती शिशु मंदिर में उच्चकोटि के शिक्षण के आलोक में छात्रों की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी होती रही, जिसके कारण स्थान की कमी परिलक्षित होने लगी। इसको दूर करने के लिए मंदिर-भवन के साथ ही लगे हुए भूखंड संख्या 118/612-613 को वर्ष 1982 में क्रय किया गया।

शिक्षा के क्षेत्र में सभा द्वारा नित्यप्रति प्रगति के प्रकाश में और भी विस्तार देने की योजना के संदर्भ में सी.बी. एस.ई. माध्यम से सह-शिक्षा विद्यालय की परिकल्पना की गई। इस परिकल्पना को मूर्तस्वरूप देने हेतु वर्ष 1984 में भूखंड संख्या 118/266 भी क्रय कर लिया गया। पूज्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री गुरुशरणानंद जी महाराज के पवित्र कर कमलों द्वारा इस भूखंड पर भवन निर्माण का शिलान्यास हुआ और अत्यंत ही तीव्रगति से रेकॉर्ड समय में भवन निर्माण सम्पूर्ण करते हुए पूज्य स्वामी जी द्वारा ही 'श्री सनातन धर्म एजुकेशन सेन्टर' विद्यालय का उदघाटन हुआ।

शिक्षा क्षेत्र में निरंतर प्रगति के अनुसरण में वर्ष 1999 में एक और भूखंड संख्या 118/608 को भी क्रय कर लिया गया और इस पर 'श्री सनातन धर्म प्राइमरी स्कूल की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य अंग्रेजी माध्यम से प्राइमरी स्तर की सह-शिक्षा प्रदान करना है।

वर्ष 2006 में मंदिर परिसर में प्रथमपूज्य वक्रतुण्ड महाकाय गणपति श्री गणेश जी महाराज की रिद्धि एवं सिद्धि सहित विशालकाय प्रतिमा की प्रतिष्ठा की गई। वरदराजन श्री गजानन जी की इतनी विशालकाय प्रतिमा कानपुर शहर एवं आस-पास के दूरस्थ क्षेत्रों में भी दर्शनार्थ उपलब्ध नही होगी।

शिक्षा के विस्तार हेतु विद्यालयों की स्थापना के साथ साथ बच्चो में सांस्कृतिक प्रतिभा के विकास हेतु समर्पित सभा कक्ष की आवश्यकता का आभास होने पर वर्ष 2013 में भूखण्ड संख्या 118/609 को क्रय कर 500 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता वाला सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित सभाकक्ष (ऑडिटोरियम) का निर्माण कराया गया जिसे परम आदरणीय श्री अमरनाथ जी सर्राफ की स्मृति को समर्पित किया गया।

शिक्षा के क्षेत्र में विस्तार एवं प्रसार के साथ ही सभा द्वारा मानव मात्र की सेवा हेतु आधुनिक चिकित्सा-सुविधायें भी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया। इसी परिकल्पना को धरातल पर लाने हेतु वर्ष 1994 में क्रय किये गए भूखण्ड संख्या 118/611 पर चिर-प्रतीक्षित चिकित्सा-प्रकल्प की स्थापना के लिए भवन निर्माण करके वर्ष 2019 में 'सनातन धर्म धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की गयी। चिकित्सालय की स्थापना करने में एवं लगातार रियायती दरों पर जनमानस को सुविधाएं प्रदान करने में समाज के अनेक व्यक्तियों तथा सामाजिक संस्थाओं के द्वारा नियमित आर्थिक योगदान किया जा रहा है। ऐसे दानदाताओं के उच्चस्तरीय सहयोग एवं नियमित आर्थिक योगदान के फलस्वरूप ही अत्यंत रियायती दरो पर डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। श्री सनातन धर्म सभा उक्त सभी उदारमना सहृदय एवं परोपकारी दानदाताओं का हृदय से आभार व्यक्त करती है।

रोगियों को उचित एवं सस्ते दर पर औषधियां उपलब्ध हो सकें एवं सस्ते दर पर डायलिसिस हो सके, इस हेतु सभा द्वारा मंदिर भवन में ही वर्ष 2021 में एक मेडिकल स्टोर भी प्रारम्भ कर दिया गया है, जिसमें रियायती दरों पर लगभग सभी दवाएं उपलब्ध हैं। चिकित्सा हेतु भवन तथा अतिरिक्त क्षेत्रफल की उपलब्धता को देखते हुए निकट भविष्य में चिकित्सा प्रकल्प में विस्तार की संभावनाएं तथा तदनुरूप योजनाएं हैं जिससे अधिक से अधिक जनमानस लाभान्वित हो सके। प्रतिदिन 200 रागियों के उपचार हेतु सुविधा उपलब्ध करवायी जायेगी। गंभीर रोगियों के उपचार हेतु ICU (गहन चिकित्सा केन्द्र) खोलने के लिए जमीन ले ली गई है। उदारहृदयी एवं लोकोपकारक दानदाताओं के आर्थिक सहयोग एवं योगदान से ही संभव होगा। चिकित्सा प्रकल्प में विस्तार की संभावनाएँ तथा तदनुरूप अन्य अनेक योजनाएँ हैं जिससे अधिक से अधिक जनमानस लाभान्वित हो सके।

मंदिर भवन को बने लगभग 72 वर्ष हो चुके थे और भवन जीर्ण-शीर्ण होने लगा था। पिछले 2-3 वर्षों से इसके जीर्णोद्धार की प्रबल आवश्यकता महसूस हो रही थी। अतः सभा द्वारा योजना बनाकर प्रभु सर्वेश्वर भगवान के प्राण-प्रतिष्ठित विग्रहों को पूर्ण विधि-विधान के साथ पुराने भवन से नए भवन में स्थानांतरित कर उनका निरंतर पूजन जारी रखते हुए पुराने भवन को पूर्णतया ध्वस्त कर शास्त्रों के अनुरूप सभी विधि-विधान के साथ जीर्णोद्धार का कार्य द्रुतगति से प्रारम्भ हो गया है। संयोग से नव-निर्माण का पावन एवं पुनीत कार्य भारत की स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव-वर्ष के दौरान ही प्रगति पर है। हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि जनमानस के अप्रतिम सहयोग से पुनर्निर्माण एवं जीर्णोद्धार का यह वृहद कार्य अतिशीघ्र ही पूरा कर लिया जाएगा। वर्तमान में ढांचागत निर्माण पूर्ण हो चुका है। नई साज-सज्जा के साथ शेष निर्माण का कार्य भी श्री सर्वेश्वर भगवान की असीम कृपा से शीघ्र ही नए कलेवर के साथ श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ सम्पूर्ण हो जाएगा।

शिक्षा के क्षेत्र में वर्तमान में बदलती परिस्थितियों, बदलते तेवर एवं प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण को दृष्टिगत रखते हुए तथा छात्रों के सर्वांगीण विकास तथा भविष्य को ध्यान में रखते हुए श्री सनातन धर्म सरस्वती शिशु मंदिर एवं विद्या मंदिर के शिक्षण का माध्यम बदलकर श्री सनातन धर्म पब्लिक स्कूल में परिवर्तित कर दिया गया है।

श्री सनातन धर्म सभा अपने सभी उदार एवं सहृदय दानदाताओं का हृदय से आभार व्यक्त करती है और यह विश्वास प्रदान करती है कि सभा अपने सभी उद्देश्यों की पूर्ति करते हुए सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति तथा भारतीय परम्पराओ के निरन्तर उन्नयन एवं विकास हेतु पूर्ण जीवटता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करेगी और समाज के सभी वर्गों के लिए समान रूप से शिक्षा एवं चिकित्सा की सेवायें निम्नतम दरों पर उपलब्ध कराने का पूरा प्रयास करेगी।